Afsana Cheeni Gudiya

चीनी गुड़िया...... में तेरी रज़ा में राज़ी मगर में इतनी भी मज़बूत नहीं जितना तू सोच रहा है ... में इतनी भी सख्त जान नहीं जितना तुझे भरम हुआ है ... तू मुझे और मेरी बर्दाश्त को जानता है पहचानता है फिर भी इतना बेपरवाह केसे हो गया ... केसे तूने मेरे वजूद को आहनी समझ कर मुश्किलों और आज़माइशो के हथोड़े बरसा दिए ... मेने तो तुझ पर ये सोच कर यकीन किया था के तू जानता है मुझे लिहाज़ा तू मुझे उतनी ही आज़माइश में मुब्तिला करेगा जितनी मेरे सब्र की क़ुव्वत होगी ... मगर तू तो जेसे फरामोश कर गया और मुझ पर होते ज़ुल्म पर खामोश हो गया .... बता क्या ये इन्साफ है ... क्या मेरे यकीन का यही सिला है ...जिस खौफ़ ने मुझे पहले लार्ज़ाया वो फिर मेरे सामने क्यूँ है .... नूर आसमान की जानिब रुख किये कहे जा रही थी .... गर्म आंसुओं का सेलाब मजबूर आँखों से रवां था ...उसके आंसुओं में ना जाने क्या तासीर थी जब वो बहते तो सुर्ख आँखों के कटोरे देहेकते अंगारों से महसूस होते ... और साफ़ नीले आसमान पर खुद बा खुद काली बदली छा जाती टिमटिमाते रोशन तारे कहीं धुन्दला कर अपना चेहरा छुपा लेते और खामोश स्याह रात अपने रूबरू बहती हवा...