Afsana Cheeni Gudiya
चीनी गुड़िया......
में तेरी रज़ा में
राज़ी मगर में इतनी भी मज़बूत नहीं जितना तू सोच रहा है ... में इतनी भी सख्त जान
नहीं जितना तुझे भरम हुआ है ... तू मुझे और मेरी बर्दाश्त को जानता है पहचानता है
फिर भी इतना बेपरवाह केसे हो गया ... केसे तूने मेरे वजूद को आहनी समझ कर
मुश्किलों और आज़माइशो के हथोड़े बरसा दिए ... मेने तो तुझ पर ये सोच कर यकीन किया
था के तू जानता है मुझे लिहाज़ा तू मुझे उतनी ही आज़माइश में मुब्तिला करेगा जितनी
मेरे सब्र की क़ुव्वत होगी ... मगर तू तो जेसे फरामोश कर गया और मुझ पर होते ज़ुल्म
पर खामोश हो गया .... बता क्या ये इन्साफ है ... क्या मेरे यकीन का यही सिला है
...जिस खौफ़ ने मुझे पहले लार्ज़ाया वो फिर मेरे सामने क्यूँ है ....
नूर आसमान की जानिब
रुख किये कहे जा रही थी .... गर्म आंसुओं का सेलाब मजबूर आँखों से रवां था ...उसके
आंसुओं में ना जाने क्या तासीर थी जब वो बहते तो सुर्ख आँखों के कटोरे देहेकते
अंगारों से महसूस होते ... और साफ़ नीले आसमान पर खुद बा खुद काली बदली छा जाती टिमटिमाते
रोशन तारे कहीं धुन्दला कर अपना चेहरा छुपा लेते और खामोश स्याह रात अपने रूबरू
बहती हवा के रक्स को भी मुल्तवी कर देती ... दरख्तों के साए मजीद गहरा जाते और
राहों के अँधेरे मंजिलों का निशान खो देते ... रात आज भी कुछ ऐसी ही मंज़र कशी में
महव हो गयी ..... नूर की आहों ज़ारियां आसमान को लरज़ा रही थीं .....और क़ल्ब का दर्द
आँखों से जारी था .....
नूर यहाँ क्यूँ बेठी
हो इतनी रात में यूँ तनहा छत पर आना मुनासिब नहीं ... दिल की आवाज़ पर नूर ने पलट
कर देखा .....
दिल में तनहा नहीं
हूँ .. मेरी शिकायतें और मेरा ग़म मेरे साथ है .... और जब ये किसी के हमराह होते
हैं तो दीगर मुश्किलें आसेब और तकलीफें उस पर तरस खा कर अपना रास्ता तब्दील कर लेते
हैं ..... मगर तुम यहाँ केसे तुम्हे तो जाना है ना जाओ अपनी तैयारी करो ....
बताओ किस ग़म में हो
नूर ... मुझे नहीं बताओगी . और ये कह कर दिल उसके करीब बैठ गयी ....
एक मासूम बच्ची जिसे मेने तब देखा था जब वो कोई
चीनी गुड़िया सी लगती थी उसके रेशमी बाल और छोटी सी नाक, मैदे सा रंग जब मुस्कुराती
थी तो उसकी आँखें और छोटी हो जाती थीं और जी करता था के इसे सीने से लगा लूँ
.....पहली दफा शायद वो 7 बरस की थी ..जब देखा था अपनी माँ और बाबा के साथ आई थी उसकी
माँ बड़ी नेक, शरीफ औरत और उसी से ही ताल्लुक़ भी था ... फिर जब भी मुलाक़ात हुई तब
गुड़िया का वही रंग था अटखेलियाँ करती किसी चिड़िया की मानिंद यहाँ से वहां वहां से
यहाँ फिरती रहती ... माँ उसकी हरकतों पर अश अश करती और अपनी बच्ची को देख देख जीती...
फिर एक रोज़ खबर आई के तिनको तो चुन चुन कर अपने आशियाने को सजाने वाली वो माँ किसी
बिमारी में मुब्तेला है और शायद ज्यादा वक़्त भी नहीं उसके पास ... उसी के करीबी
अफराद से उसके उन दिनों की तस्वीरों का हाल सुनती थी .... अब वो उस मासूम चीनी
गुड़िया को जो 12 बरस की हो गयी है .. माँ की वो गुड़िया बेइरादा ही सही मगर यकदम
समझदार हो गयी ..माँ उसे घरदारी सिखाने लगी .. बाप को संभालने लगी वो .. माँ की
बीमारी ने उसके बचपने की खिलखिलाहट छीन ली और उसकी फिकरों को ज़ईफ़ कर दिया ....
स्कूल की कॉपी में लिखते लिखते उसके हाथ कांपने लगते और उसे गुमान होता के कहीं माँ
की साँसों ने बग़ावत तो नहीं करदी होगी ..... कहीं वो बेहोश ना हो गयी हो .... और
इसी ख्याल में जाने कितनी दफा उसने अपने पसंद के सबक को भी बेदिली से नामुकम्मल
छोड़ दिया ..... में उसके हाल को सुनती तो सोचती केसा लगता होगा उसे ... केसे वो
बर्दाश्त करती होगी .....
एक रोज़ खबर आयी माँ
चली गयी ....मेने फिर गुड़िया को नही देखा ....
लेकिन कुछ रोज़ बाद
मालूम हुआ गुड़िया के बाबा से गुड़िया की तन्हाई बर्दाश्त ना हुई और वो उसके लिए एक
नयी माँ लाये ...
नयी माँ .... क्या गुड़िया के लिए नयी माँ की ज़रूरत थी .......शायद नहीं ....
गुड़िया को बाबा में ही माँ के इंतेखाब का भरम था
... जेसे माँ ने गुड़िया को बाबा के लिए ख़याल रखने की नसीहत दी थी वेसे ही बाबा को
भी गुड़िया के लिए खुद ही माँ के रूप में ढल जाना था ... लेकिन बाबा ऐसे नहीं होते
.... वो माँ नहीं बनते ... वो बाबा ही रहते हैं ... बाज़ार से नयी चीज़ ला कर पुरानी
शै का दर्द भुला देने वाले बाबा ....
गुड़िया को याद आया
जब उसकी डॉल का बाज़ू टूट गया था और वो बेतहाशा रो रही थी ... चीख़ पुकार से उसका गला
रुंध गया था चीनी गुड़िया अपनी हथेलियों से आंसू पोंछती जाती और गुड़िया को सीने से
लगाये रोती जाती .... तब बाबा ने कहा था कोई बात नहीं उसे नयी डॉल ला कर देंगे
.... और दो रोज़ बाद बाबा ने नयी डॉल ला कर अपना फर्ज़ पूरा किया था ... मगर बाबा ने
हरगिज़ नहीं देखा की माँ ने उसी शाम डॉल के टूटे हाथ को सिल कर उसे नयी पोशाक पहना
दी थी ... और प्यार से कहा था..... डॉल नाज़ुक हो गयी है इसका ख़याल रखना .....
शायद बाबा और माँ
में यही फर्क होता है .....
आज चीनी गुड़िया की
शादी थी .... बाबा ने गुड़िया का रंज दूर करने के लिए पहले नयी माँ ला कर दी और जब
उसका दिल उस से नहीं बहला तो बाबा ने उसे एक और नया रिश्ता ला कर दे दिया.... शायद
ये रिश्ता गुड़िया को नारसाइयों के करब से निजात देदे .....मेने देखा था गुड़िया
मुझे सवालिया नज़रों से देख रही थी ....और कह रही थी ... तुम भी मेरी माँ की जगह जा
कर खड़ी हो रही हो ..... तुम तो चली जाओगी मगर तुम्हारी चीनी गुड़िया का क्या होगा
.... अगर उसके बाबा ने भी उसे नई माँ ला दी बाज़ार से तो .....
क्या सोच रही हो ..
दिल ने फिर पुछा .....
कुछ नहीं गुड़िया में
अब मेरी गुड़िया नज़र आने लगी है अब डर लगने लगा है दिल... में भी तु सफ़र पर हूँ ....
और मेरी नन्ही गुड़िया ......चीनी गुड़िया के सफ़र पर ....
नूर हर दौर में ईसा को अपनी सलीब ख़ुद उठानी है
.... अब और मत सोचो जो मेरा इंतेख़ाब था .....वही तुम्हारा भी होगा ...... जहाँ में हूँ वहां तुम्हारी मुनादी हो चुकी हर
दर्द से आज़ाद कर अब आजाओ वहां .... यहाँ जो है वो दर्द से पुर है ..... फज्र की
अजां होने लगी और दिल आसमान में नूर बन कर खो गयी ...
दिल.... मेरी सहेली
दिल जो चीनी गुड़िया की माँ है .....और मेरी सहेली ...... में जब भी सोचती हूँ वो
आसमान से उतर कर मेरे बाज़ू में बैठ जाती है .......
डॉ जेबा
ज़ीनत
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