Begum Akhter


पानी को छू रही है झुक झुक के गुल की टहनी
जेसे हसीं कोई आईना देखता हो

आदाब .....

आज तो सुबह की रौनक ही कुछ और है  ... जानते हैं क्यूँ .... क्यूँ की आज मल्लीकाए गज़ल का दिन है.. 
... जी हाँ वही जिनकी सुरीली आवाज़ में हर राग और रागिनी शहद सी घुल कर मदमस्त हो जाती हैं ..जिनकी आवाज़ की खनक सबको ख्वाबों की सेर कराती है ..... वो कोई और नहीं फ़क़त बेगम अख्तर हैं ... और आज यानि ७ अक्टूबर को इसी शख्सियत की सालगिरह है
7 अक्टूबर १९१४ को फैजाबाद के एक घराने में पैदा हुई मासूम बच्ची जिसका नाम रखा गया अख्तरी बाई .... इस वक़्त कौन जानता था की ये बच्ची पूरी दुनिया में अपने फन के साथ पहचानी जाएगी ...... और गायेकी के आसमान का रौशन सितारा बन कर जगमगाएगी ..... ग़ज़ल जिस के लब पर रक्सां हो इतराएगी और गीत जिसके होंटों पर मन मंद मुस्कुराएंगे ...... बेगम अख्तर को कुदरत ने निहायत मीठी आवाज़ दी और छुटपन से ही उन्हें गाने का बेहद शौक़ था .....और इसी लिए इनके चाचा ने इन्हें सारंगी के मशहूर उस्ताद इमदाद अली खान साहब के पास भेजा .... जहाँ ये गायेकी की बारीकियां वो सीख पायें .......
  सुना करो मेरी जान उन से उन के अफ़साने
सब अजनबी हैं यहाँ कौन किस को पहचाने ......
 गीतों में अनोखी तासीर रखने वाली बेगम अख्तर ना सिर्फ ग़ज़लों की बलके हिंदी गीतों की भी जान रही हैं ..... हाँ तो बचपन के शौक़ ने वक़्त के हमराह  जवान होना शुरू किया इमदाद साहब से इब्तेदाई तालीम ले रही थीं बेगम .... और इसके बाद पटयाला घराने के अता मुहम्मद खान साहब ने इनकी तरबियत की ...... जानते हैं इनका पहला प्रोग्राम कौनसा था ....सिर्फ १५ बरस की उम्र थी इनकी...... इस वक्त बिहार में बड़ा भूकंप आया था उन्ही की मदद के लिए कलकत्ता में सबके सामने गीत पेश किये ..... और इसी दौरान आपकी फनी महारत देख कर बुलबुले हिन्द सरोजनी नाइडू ने इनसे कहा के आपके गले की तरबियत तो खुद कुदरत ने की है .....जिसके सोज़ ओ साज़ को इंसान खुद महसूस कर सकता है ......
 कहते हैं के ग़ज़ल वो अदा है जो दिल के जज्बो को बयान करती है .. जितनी नाज़ुक ये नज़र आती है उस से कहीं ज्यादा नाज़ुक है इसे सुर के साथ पेश करना .....
 एक डाली है लचकती सी जिस पर फूल हैं नाज़ुक ...
आहिस्ता से थामिए ये ग़ज़ल है मीर की ....
बेगम अख्तर ने क्लासिकल सिंगिंग की तालीम ली थी दादरा,ठुमरी में तो वो लाजवाब थीं ..... लेकीन जब बात ग़ज़ल की आई तो जेसे ग़ज़ल की जुल्फें बेगम के आँचल पर ही बिखर गयी ..... ग़ज़ल की उन जेसी अदाएगी आज तक मुमकिन नही ..... मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी कहते हैं की मेरे नज़दीक ग़ज़ल के दो मानी हैं एक तो माशूक से बातें करना और दुसरे बेगम अख्तर ......  बेगम अख्तर जिनका अंदाज़ जितना नफासत पसंद था गायेकी में उतनी ही पुख्तगी थी ...... नाज़ो अदा जेसे बेगम के सामने  सर ख़म किये झुके हुए थे ...... शाएरी की बात करें तो कई शोअरा का कलाम उन्होंने पढ़ा लेकिन बेहज़ाद लखनवी की तकरीबन १०० से भी ज्यादा ग़ज़लों को उन्होंने अपनी आवाज़ दी ..... वो रेशमी आवाज़ जिसके सुरूर में सब खोये हैं जानते हैं शादी के बाद शोहर की जिद पर इन्होने गायेकी छोड़ दी ......  ५ साल गुज़र गए और बेगम बीमार हो गयीं .. डॉक्टर्स ने भी उम्मीद छोड़ दी के वो जिंदा बचेंगी... इसी दरमियाँ लखनऊ रेडिओ से बुलावा आया वहां किसी तौर पहुंची और दादरा पेश करते हुए इस कद्र फूट फूट कर रोई के बस ... और यही दिन था के सेहत में सुधार हुआ और वो गायेकी जी जानिब फिर लौट आयीं......
 १९३० से १९५८ तक हिंदी सिनेमा के खूब गीत गाये जिनमे फिल्म मुमताज़ बेगम ,अमीना ,रूप कुमारी ,जवानी का नशा ,रोटी ,अनार बाला , नल दमियंती ,और जल सागर ख़ास थीं .... लेकिन इसके बाद फ़िल्मी गीतों में दिल नहीं लगा और फिर ग़ज़लों की जानिब रुख किया ....... मीर ग़ालिब ,सौदा, साहिर , फैज़ की ग़ज़लों से आज भी उनकी आवाज़ की चाशनी लोगों की पसंदीदा है .... 30 अक्टूबर १९५८ को अहमदाबाद में बेगम ने अपना आखरी प्रोग्राम दिया .. और यहीं दिल का दौरा पडा और वो सदा के लिए खामोश हो गयीं ...... उनकी आखरी ग़ज़ल कैफ़ी आज़मी की थी जो पेश की .... सच कुछ लोग इतिहास के पन्नो पर यूँ लिख दिए जाते हैं के आने वाली नस्लें उन्हें पढ़ पढ़ कर फैज़याब होती हैं ... बेगम भी कुछ वेसी ही थी ....
 बेगम अल्लाह आपकी मगफिरत करे ..आमीन


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