मंजिल का रुख


 आत्मविश्वास को बढ़ाता है....

खुद से बात किये हुए अक्सर कई दिन गुज़र जाते हैं .. और जब याद आता है तो अंदर से एक नाराज़गी जन्म लेती है.. के अब क्यूँ ख्वाहिश हुई बात की जब बात का इरादा ही नहीं है तो क्यूँ आकर बैठ जाते हो .. लेकिन ये एक हकीक़त है के जब भी हमारे साथ कुछ बहुत अच्छा या थोडा बुरा सा कुछ होता है तो हम खुद से बातें करने ... शिकायतें करने या दिल हल्का करने पहुँच जाते हैं .. बिना ये सोचे कि इस काम को करने से पहले भी क्या खुद से मशवरा किया था ... नहीं तब तो बस यहाँ वहां की सुनी बजाहिर देखा और कर दिया ... लेकिन अब सोचना पड़ रहा है .... किसी ने क्या खूब कहा है .... करने से पहले सोचना ज्यादा सही होता है और अपने अन्दर की उस खालिस आवाज़ सुन कर फैसला करना भी फायदेमंद होता है .... तो बस अब आपका कुछ काम करने का दिल हो या फिर कोई फैसला लेना हो तो जल्द बाज़ी मत करना ..
खुद से बात करना सोचना समझना और अपने आप को अन्दर से मज़बूत रखना हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाता है ....और तब आप जो भी फैसला करते हैं वो अक्सर सही होता है ... पहले अपने आप से मुहब्बत कीजिये भरोसा कीजिये और फिर दुनिया की तरफ अपनी मंजिल का रुख कीजिये ..... एक रौशनी सी नज़र आती है यकीन और एतेमाद की .... हैप्पी लाइफ ..
zaiba ...

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