baat shakeel badayuni ki ..... यही वफ़ा का सिला है तो कोई बात नहीं, ये दर्द तूने दिया है तो कोई बात नहीं, किसे मजाल कहे कोई मुझको दीवाना, अगर ये तुमने कहा है तो कोई बात नहीं, यही बहुत है कि तुम देखते हो साहिल से, सफ़ीना डूब रहा है तो कोई बात नहीं, शकील बदायूंनी.......हाँ शकील की ही तो है ये ग़ज़ल ... वही शकील जिसके गीतों में जाने केसी तासीर थी जो सुनता था उसी का हो जाता था ...चलिए आज के सफ़र में हम शकील बदायुनी के गीतों, ग़ज़लों, और नज्मों के समन्दर में गौता लगाते हैं.... चलिए वक़्त को थाम लेते हैं और बैठ जाते हैं माजी की किताब को खोल कर......सफहा सफहा पढ़ते हैं शकील की ज़िन्दगी.......3 अगस्त १९१६ को उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ.....शकील का असली नाम शकील अहमद है...... आपके पिता "मोहम्मद जमाल अहमद सोखता कादरी" बदायूं के के बड़े विद्वान थे .... घर का माहोल भी शायराना और मज़हबी सा था वालिद भी शायर थे चाचा "ज़िया उल कादरी भी उस्ताद शायर थे ....और शायद यही वजाह थी के शुरू से ही वालिद साहब को इनकी तालीम की फ़िक्र हुई तो बस उसी के पीछे पढ़ गए.......शकील ने अपनी शाएरी की शुरुआत ...
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