Chand

        रात का अनकहा सा फ़साना ..... रात जिसके पहलू में चाँद जागा रात भर ज़मीन को तकता रहा ... और ज़मीन इधर से उधर सूरज के चक्कर लगाती रही ... और रात का नन्हा चाँद  इस ज़मीन के पीछे पीछे दौड़ता रहा ..... कभी आधा दिखा तो कभी पूरा तो कभी एक तिहाई ... लेकिन ज़मीन तो जेसे सूरज पर मर मिटी थी .... उसे ना अपनी खबर ना रात की  ना भोले चाँद की ....अब चाँद दिल की बात कहे तो केसे कहे ... शायद आज रात वो बात कह भी दे .......
      मालूम नहीं चाँद अपनी बात कहेगा या नहीं ... लेकिन आप ... आप तो अपनी बात आज रात कह ही दीजिये ....... शायद किसी को आपसे वो बात ही सुनने का इंतज़ार हो ... वो चाशनी से घुले लफ्ज़ जिन में भीग कर कोई अपने आप को भुला बैठे .... रात सुहानी भी भी होगी और दिल फरेब भी .. कहीं ये रात भी और सेंकडों रातों की तरह ढल ना जाये .....

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