नज़्म इरादा
इरादा
मौसम बदल गया है और शायद मैं भी
ये शजर बीते बरस के बूढ़े पत्ते
झाड़ झाड़ कर शाखों से गिरा रहे हैं
राहें अटी पड़ी हैं मुर्दा ज़र्दई पत्तों से
जिनमे न जिंदिगी बाकी है ना ही उम्मीद
अब के मौसम मैंने भी ये सोचा है
बीते बरसों के बेदम रिश्तों के सूखे पत्ते
झाड़ झाड़ कर अपने वुजूद के लबादे से
फ़ेंक दूंगी और बिरहना शाख सी खड़ी हो कर
नयी कोपलों को आवाज़ दूंगी
जिनमे सब्ज़ा भी होगा खुन्की भी और उम्मीद भी
वाकई मौसम बदल गया है
और शायद मैं भी .......
Dr Zaiba zeenat
मौसम बदल गया है और शायद मैं भी
ये शजर बीते बरस के बूढ़े पत्ते
झाड़ झाड़ कर शाखों से गिरा रहे हैं
राहें अटी पड़ी हैं मुर्दा ज़र्दई पत्तों से
जिनमे न जिंदिगी बाकी है ना ही उम्मीद
अब के मौसम मैंने भी ये सोचा है
बीते बरसों के बेदम रिश्तों के सूखे पत्ते
झाड़ झाड़ कर अपने वुजूद के लबादे से
फ़ेंक दूंगी और बिरहना शाख सी खड़ी हो कर
नयी कोपलों को आवाज़ दूंगी
जिनमे सब्ज़ा भी होगा खुन्की भी और उम्मीद भी
वाकई मौसम बदल गया है
और शायद मैं भी .......
Dr Zaiba zeenat
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