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Showing posts from 2018

naya saal new year

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तुझे नया साल मुबारक हो शफ्फाफ परों को पुर कैफ फ़ज़ा में लहरा कर ... शाम के सिरहाने वादी के उस पार ... जब आफताब ज़र्द हो कर आसमान की हथेली पर सुरमई सुर्ख और गुलाबी मेहँदी के बूटे लगा रहा था .. उसी पल मेने तुम्हे सोचा और फिर आहिस्ता से कहा ... नए साल के नए दिन की नई नयी सी शाम में .... नयी राग और नयी नयी सी फिकरों में सिमटी इन लम्हों की महक मुबारक हो ... तुझे नया साल मुबारक हो तुझ से मेरा राब्ता कुछ यूँ भी है ... तेरी निगाह जब उठती है तो में मंज़रों में बिखर कर तेरे हर नज़ारे में ढल जाती हूँ..... इस शाम भी आसमान से ज़मीन के दरमियाँ इस शौख़ हवा ने मेरा हाथ थामा है ... में घुल गयी हूँ हवा में तू मुझे सुन रहा है ... में तुझे सोच रही हूँ तू मेरी इबारत हो तुझे नया साल मुबारक हो

My Sweet heart

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स्वीटहार्ट _ तुम्हे चलना नहीं आता केसे चल रही हो .... उमेर ने शाज़ी की कोहनी को थामा और तेज़ रफ़्तार के साथ रोड क्रॉस करने लगा ... शाज़ी उसे बगौर देखने लगी और दरमियाँ के डिवाइडर पर पहोंचते ही उमेर की सख्त गिरफ्त से अपनी कोहनी को आज़ाद करा प्यार से बोली ... कहीं बैठें एक ज़रूरी बात कहनी है .. शाम के ५ बज रहे थे आम तौर पर बड़े शहरों के अहम् रास्तों और बाजारों पर अमूमन रश होता है इस वक़्त .. रिक्शे ठेले तो अलग है इस रोड पर बड़ी गाड़ियाँ बसें ऑटो इस कद्र रश पैदा करते हैं के जेसे पैदल चलना तो जुर्म है अब ... और अगर बेदिहानी में कभी ज़रा सी चूक हो जाए तो जान की तो वेसे भी कीमत नहीं .....अजीब दौर है ...बिल्ली सामने हो तो एहतियात से ठहर कर फिर आगे बढ़ेंगे लोग ....और अगर इंसान हो तो चिल्ला कर साइड में हटायेंगे नहीं तो गाड़ी उपर ही चढ़ा देने में भी कोई हैच नहीं .... इन्सान ही तो है वेसे भी आबादी में तेज़ी से इजाफा हो रहा है कोई चला भी जाये तो किसे फर्क पड़ेगा ... वाकई बड़ा बेहिसी का दौर है ... क़ल्बी बेहिसी ... जेहनी बेहिसी .. जज्बाती बेहिसी ... रेस्ट्रों की टेबल के रूबरू मैं सामने के मनाज़िर में खो...
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जियो ज़िन्दगी मज़े के साथ

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बादाम खाने से उतनी अक्ल नहीं आती , जितनी धोखा खाने से आती है।   ह्हहा वाकई ...ज़िन्दगी आपको जब कुछ सबक दे तो उसे गौर से सुनिए क्यूँ की अक्सर अनसुनी बातें ही काम की होती हैं..... और ना सुन कर हम हमारा नुकसान कर जाते हैं ..... दर असल हमारी आदत हो गयी है हम खुद को जाने क्यूँ बोहोत स्मार्ट समझते हैं जेसे हमे सब मालूम है ..... लेकिन साहब ये ज़िन्दगी है और यहाँ कब कौनसी बात कहाँ और केसी करवट ले मालूम नहीं .... इस लिए चेलेंजेज़ के लिए तो हमेशा रेडी रहिये मगर ज़रा सोच समझ कर..... ज़रा सा फायेदा देख कर उतावले होना भी तो सही नहीं   .... वो कहते हैं ना पानी ठंडा देख कर छलांग लगा देना अक्लमंदी नहीं उसकी गहराई भी मालूम करना लाज़मी है ... वरना आप डूब भी सकते हैं ..... हर पल जो भी गुज़रे उसे सीख कर समझ कर अपनी एक्सपीरियंस की पोटली में डाल लीजिये या फिर तजुर्बे कार लोगों की महफ़िल में भी वक़्त गुज़ारिये .....और आप खुद महसूस करेंगे की आपको इस से बहुत फायेदा होगा ... आप जितना ज़िन्दगी में तजुर्बा हासिल करते जाते हैं उतना ही ज़िन्दगी आपको अपने खट्टे मीठे तीखे फ्लेवर्स में से हर जायेका चखाती चलती है ....

मंजिल का रुख

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  आत्मविश्वास को बढ़ाता है.... खुद से बात किये हुए अक्सर कई दिन गुज़र जाते हैं .. और जब याद आता है तो अंदर से एक नाराज़गी जन्म लेती है.. के अब क्यूँ ख्वाहिश हुई बात की जब बात का इरादा ही नहीं है तो क्यूँ आकर बैठ जाते हो .. लेकिन ये एक हकीक़त है के जब भी हमारे साथ कुछ बहुत अच्छा या थोडा बुरा सा कुछ होता है तो हम खुद से बातें करने ... शिकायतें करने या दिल हल्का करने पहुँच जाते हैं .. बिना ये सोचे कि इस काम को करने से पहले भी क्या खुद से मशवरा किया था ... नहीं तब तो बस यहाँ वहां की सुनी बजाहिर देखा और कर दिया ... लेकिन अब सोचना पड़ रहा है .... किसी ने क्या खूब कहा है .... करने से पहले सोचना ज्यादा सही होता है और अपने अन्दर की उस खालिस आवाज़ सुन कर फैसला करना भी फायदेमंद होता है .... तो बस अब आपका कुछ काम करने का दिल हो या फिर कोई फैसला लेना हो तो जल्द बाज़ी मत करना .. खुद से बात करना सोचना समझना और अपने आप को अन्दर से मज़बूत रखना हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाता है ....और तब आप जो भी फैसला करते हैं वो अक्सर सही होता है ... पहले अपने आप से मुहब्बत कीजिये भरोसा कीजिये और फिर दुनिया की तरफ अ...

एक तेरे ना होने से

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एक तेरे ना होने से ....   एक तेरे ना होने से कहीं भी मुझको चैन नहीं   ज़हन को मेरे तस्कीन नहीं कही दिल में खलिश है बाक़ी   कहीं तेरी आवाज़ का शैबा कहीं तेरे अंदाज़ की प्यासी टुकड़ा टुकड़ा तुझको ढूँढूं खैरा खैरा तुझको पाऊं क़तरा क़तरा तुझ में खो कर केसे अपनी मंजिल पाऊं जागूं तुझमे तुझ में सौउं तेरे लम्स के एहसासों में लम्हा लम्हा केसे रोऊँ मेरी आँखें जेसे सावन मुत्लाशी सी बरसी जाएं फिर भी तुझ को तुझ से मांगूं दुआ ये मेरी सूनी जाए चल अब बांध पोटली राह पे अपनी फिर मुढ़ जाऊं नैना मेरे तुझको पालें फिर इनमे वो दीप जलाऊं एक तेरे ना होने से   कहीं भी मुझको चैन नहीं ...... जेबा ......

अफसाना दानिश्कदा دانش کدہ

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افسانہ دانش کدہ ہماری قوم کے سپہ سالار ہیں یہ طالبِ علم...... اور ہمارا فرض ہے کہ ہم انکے ہنر مزید نکھاریں ، ان کے درمیاں دہکتی علم کی آگ کو ہوادیں.....حوصلہ دیں..... اور ان کی راہنمائی کریں تاکہ زندگی کی تلخ ہوائیں ان کی جلتی ہوئی اس آگ کو بجھا نہ سکیں.....ہمیں چاہیے جن طلبہ میں صلاحیت، قابلیت اور جذبہ ہے ، ہم قدم قدم پر ان کے لیے چراغ روشن کریں۔ پروفیسر پرویز کی اس پُراعتماد تقریر نے جلسہ ہال کو تالیوں کی گونج سے پُر کردیا۔ طلبہ اپنے شعبہ کے اس استاد کی ایسی مؤثر تقریر پر قربان ہوئے جارہے تھے۔ استاد کی ایسی انقلابی تقریریں اکثر و بیشتر طلبہ کے ذہن کو متاثر کرتی ہیں اور انہیں اپنے کامیاب مستقبل کی جانب راغب کرتی ہیں ۔ماحول میں خوشی اور مسرتوں کی آگہی تھی...... آج کالج میں ابتدائی تقریب کا روز تھا کہ جہاں نئے سیشن کے آغاز کے ساتھ آج ہی طلبہ کی ایک دوسرے سے اول اول ملاقات کا بھی خوبصورت موقع تھا۔ اس تقریب کے لیے جلسہ گاہ کوخوشنما پھولوں اور مختلف رنگوں کے پردوں سے آراستہ کیا گیا تھا، ماحول خوشنما تھا، نوجوان چہروں پر مسرتوں کی کلیاں تھیں اور اتنے بڑے کالج ...

Lovely day

भोली सूरत वाला एक बच्चा बहुत दिनों से कुछ चुप चुप था मैने पास बैठ कर उसके घुंगराले बालों में उंगलियां फेरते हुए पूछा के हो गया यारा सुस्त सा था मेरी गोद में सर रख कर आहिस्ता से बोला थक गया क्यूँ ऐसा क्या किया तुम नहीं समझोगी रहने दो .......और ये कह कर उसने आँखें मूँद लीं में उसे बगौर उसे देखती रही शादी से पहले ये नौजवान लड़का कितना बड़ा और समझदार लगता था और फिर कब दो प्यारी प्यारी सी बेटियों का पापा बन कर भी छोटा बच्चा सा बन जाता है ...... और जब आवाज़ आती है किसी कमरे से पापा कहाँ हो आप तो ये पापा बन जाता है में मुन्तजिर हूँ अपने शोहर के दीदार की  लेकिन अब या तो बच्चा है या पापा और पल दो पल का महबूब भी डॉ zaiba ज़ीनत....... بھولی صورت والا ایک بچہ بہت  دنوں سے کچھ  چپ چپ تھا میں نے پاس بیٹھ کر اسکے گھنگرالے بالوں میں انگلیاں پھرتے ہوئے پوچھا کے ہو گیا یارا سست سا تھا میری گودی میں سر رکھ کر آھستہ سے بولا تھک گیا کیوں ایسا کیا کیا تم نہی سمجھوگی رہنے دو ....اور یہ کہ کر اسنے آنکھیں موند لیں میں اسے بغور دیکھتی رہی شادی سے پہلے یہ نوجوان لڑکا کتنا بڑا...

Highway

अक्सर एक राय हम हाईवे के लिए यूँ ही बना लेते हैं ....की वहां ड्राइव करने वाले ट्रक ड्राइवर्स नशे में रहते हैं... बात बात पर बहस करते हैं साइड नहीं देते और तो और बेहद खराब ड्राइविंग करते हैं ..... लेकिन जनाब अब ज़रा कान खोल कर और दिमाग कंसंट्रेट कर सुनिए हकीक़त क्या है ..... ट्रक ड्राइवर्स अपने अपनों से कई कई महीनो दूर सिर्फ सड़कों के हमराही बने चलते रहते हैं .... सिर्फ हमारे लिए देश दुनिया का सामान इधर से उधर आते जाते लेजाते ... शायद ज़िन्दगी का नाम ही उनके लिए सफ़र होता है ... ब ेटे का बर्थडे हो या नन्ही गुडिया का पहला दिन स्कूल का माँ की खराब तबियत हो या पत्नी का करवा चौथ का इंतज़ार कुछ भी हो ये वहां नहीं ... बल्कि आपके लिए सफ़र पर होते हैं .. अपने गम को पीते और ज़रूरतों के लिए जीते ... ऐसे में कभी कभी गुस्सा भी होते हैं नींद से भर भी जाते हैं थकन से चूर बस कुछ पैसों के लिए ताकि जिनसे दूर हैं उनके पास वो आजाये जो ज़िन्दगी के लिए लाज़मी है .... है ना .. तो प्लीज् अब उन बेशुमार हाईवे ट्रक ड्राइवर्स की इज्ज़त कीजिये और हाँ जब मिलें तो एक मुस्कराहट ज़रूर शेयर कीजिए ..... zaiba

Shakeel Badayuni

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baat shakeel badayuni ki ..... यही वफ़ा का सिला है तो कोई बात नहीं, ये दर्द तूने दिया है तो कोई बात नहीं, किसे मजाल कहे कोई मुझको दीवाना, अगर ये तुमने कहा है तो कोई बात नहीं, यही बहुत है कि तुम देखते हो साहिल से, सफ़ीना डूब रहा है तो कोई बात नहीं, शकील बदायूंनी.......हाँ शकील की ही तो है ये ग़ज़ल ... वही शकील जिसके गीतों में जाने केसी तासीर थी जो सुनता था उसी का हो जाता था ...चलिए आज के सफ़र में हम शकील बदायुनी के गीतों, ग़ज़लों, और नज्मों के समन्दर में गौता लगाते हैं.... चलिए वक़्त को थाम लेते हैं और बैठ जाते हैं माजी की किताब को खोल कर......सफहा सफहा पढ़ते हैं शकील की ज़िन्दगी.......3 अगस्त १९१६ को उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ.....शकील का असली नाम शकील अहमद है...... आपके पिता "मोहम्मद जमाल अहमद सोखता कादरी" बदायूं के के बड़े विद्वान थे .... घर का माहोल भी शायराना और मज़हबी सा था वालिद भी शायर थे चाचा "ज़िया उल कादरी भी उस्ताद शायर थे ....और शायद यही वजाह थी के शुरू से ही वालिद साहब को इनकी तालीम की फ़िक्र हुई तो बस उसी के पीछे पढ़ गए.......शकील ने अपनी शाएरी की शुरुआत ...

فون کال Afsana Phone call

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فون کال موسم نے اپنے مزا ج میں نہ تلخی کو شامل کیا تھا نہ سرد ہواؤں سے ہی ناطہ جوڑا تھا ۔ ایک سہانہ گلابی موسم شہر کو اپنے آغوش میں لیے تھا ۔ کہنے کو اس ماہ میں سردی کی آمد کا انتظار ہوتا ہے لیکن شاید موسم بھی انسانی جذبوں کی طرح اپنے مطابق تبدیل ہونے لگے ہیں جب جی چاہا محبت کی گرمی کا احساس کرادیا اور جب دل کیا سرد حساس زندگی سے دامن ترکرلیا۔ موسم کی یہ دلفریبی اب اکھرنے لگی تھی۔۔۔بس یہی ماحول، یہی زندگی۔۔۔ شام کے ساڑھے پانچ بجے تھے اور اسماء اسٹڈی میں بیٹھی کتابیں نہار رہی تھی یا یوں کہیں کہ کسی کتاب سے کسی موضوع سے دلجوئی کرنے کے فراق میں تھی۔ فون کی گھنٹی بجی تو سناٹے کی گرہ کھل گئی۔فون سامنے کی ٹیبل پر رکھا چیخ رہا تھا اور اسما اُکتائی ہوئی اس پر غصہ کی نظر ڈال رہی تھی، شاید اس لیے کہ پورے سوا گھنٹے کی محنت کے بعد اب جاکر یہ ڈِسائڈ کیا تھا کہ کون سی کتاب پڑھوں۔ کرسی سے اُٹھی تو پین ٹیبل پر سے گر گیا۔ سائڈ کے کچھ کاغذ جو بے ترتیب رکھے تھے نیچے پھسل گئے۔ کسی طرح جلدی سے فون اُٹھایا اور بغیر نمبر دیکھے ہی سوال کرڈالا ، جی کون؟۔۔۔۔۔۔کون صاحب فرما رہے ہیں ۔۔۔ و...

Afsana : Zidd

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ڈاکٹر زیبا زینت ضد نہیں میں تمہیں نہیں بھول سکتی۔۔۔کسی قیمت ، کسی صورت نہیں۔۔۔۔۔۔نعمان۔۔۔تم میری زندگی ہو۔۔۔میری زندگی کی پہلی اور آخری تمنا ہو۔۔۔ میں کسی طور پر تمہیں فراموش کروں، یہ میرے بس میں نہیں۔۔۔۔۔۔ بجز اس کے میں مرتو سکتی ہوں ، اپنی زندگی کو ختم کر خاموش ہوسکتی ہوں ،لیکن ہماری محبت مجھ سے بھلائی نہیں جائے گی نعمان۔۔۔۔۔۔ تمہاری محبت میری ذات میں پیوست ہوچکی ہے، تم میری خوشی ہی نہیں میرا سب کچھ ہو ۔۔۔ میں نے محبت جب سے محسوس کی.......... اس لفظ کی عظمت کو جب سے میں نے جانا ، تمہاری ہی پوجا کی ہے نعمان تمہارا تصور، تمہاری خواہش اور تمہاری ہی آرزو کی ہے۔۔۔......... میری دعاؤں میں تم ہو نعمان میری فکر کے ہرگوشے میں تمہارا ہی مقام ہے۔۔۔ میری سانسوں میں تم بسے ہو اور میرے جسم میں تمہارا عشق پیوست ہے۔۔۔ آج ماہِ نور کے جزبات نعمان کے روبرو اتنی شدت کے ساتھ بیاں ہوئے ،وہ خود کو روک نا پائی اور لفظ بلفظ کہتی چلی گئی  اب تو اعتبار کرو، اب تو مجھے اپنی محبت کے پھول دیدو۔۔۔خدا کے لیے نعمان۔۔۔ تم مجھ سے میری سانسیں مانگ لو ، میری آنکھوں کی بینائی چھین لو، لیکن یہ...